भोपाल में ताजिया, अखाड़ों, सवारी की नजर आई धूम

भोपाल

योम ए आशूरा (मुहर्रम की 10 तारीख) पर राजधानी भोपाल में ताजिया, अखाड़ों, सवारी की धूम नजर आई। हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मनाए जाने वाले इस त्योहार पर अकीदतमंद लोगों ने रोजा रखा, लंगर बांटा, घरों और मस्जिदों में खास इबादत की।

योम ए आशूरा पर शहर के विभिन्न हिस्सों से ताजियों और अखाड़ों का जुलूस निकलना शुरू हुआ। इनका रुख इमामी गेट की तरफ था। यहां इकट्ठा होने पर अकीदतमंद यहां दूरुद, फातेहा और अकीदत के पेश करने पहुंचे। यहां से यह जुलूस धीरे-धीरे करबला की तरफ बढ़ता गया। जहां शिरीन नदी और कोकता में ताजिए, अलम, सवारी विसर्जित करने की रस्म पूरी की गई। शहर में अनेक स्थानों पर इन जुलूसों का स्वागत भी किया गया। ताजिया कमेटी के पदाधिकारियों और अखाड़ों के उस्ताद और खलीफा का सम्मान भी किया गया।

क्या है आशूरा
‘आशूरा’ और ‘मुहर्रम’ वस्तुतः अरबी शब्द से उद्घृत है। मुहर्रम का शाब्दिक का अर्थ है निषिद्ध। इस्लामिक परंपरा के अनुसार मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पाक महीनों में एक है, इस दरमियान युद्ध करना वर्जित होता है। आशूरा इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तिथि को मनाया जाता है। इस्लाम में आशूरा को स्मृति दिवस के रूप में देखा जाता है। यह वस्तुतः उपवास और धार्मिक समारोहों के साथ मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें सुन्नी समुदाय उपदेश और भोजन आदि के साथ इस उत्सव को सेलिब्रेट करते हैं। वहीं शिया मुसलमान आशूरा को शोक के रूप में मनाते हैं। इस दिन वे काले रंग के वस्त्र पहनते हैं।

शिया और सुन्नी आशूरा को अलग-अलग तरीके से क्यों मनाते हैं?
मुहर्रम माह की महीने की 10वीं तारीख यौम-ए-आशूरा है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं और कर्बला की जंग में शहादत देने वालों के लिए मातम मनाते हैं। इस दिन शिया समुदाय के मुस्लिम जहां ताजिया निकालते हैं, मजलिस पढ़ते हैं, और शोक व्यक्त करते हैं, वहीं सुन्नी समुदाय के मुसलमान रोजा रखते हैं और नमाज अदा करते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार अक्टूबर 680 ई में कर्बला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की हत्या कर दी गई थी। इसलिए शिया मुसलमान इस दिन को उनकी बरसी के रूप में मनाते हैं।

क्या है यौम-ए-आशूरा की कहानी
कहा जाता है कि यजीद एक बहुत क्रूर शासक था। वह चाहता था कि और की तरह इमाम हुसैन भी उसके अनुसार कार्य करे, लेकिन यजीद का इमाम हुसैन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन यजीद को पता चला कि इमाम हुसैन कर्बला में पहुंचे हैं, उसने कर्बला का पानी बंद करवा दिया, लेकिन इमाम हुसैन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह इमाम के दबाव के आगे नहीं झुके। इसी बीच मुहर्रम की 10वीं तिथि यौम-ए-आशूरा को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर आक्रमण करवा दिया। इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ यजीद की भारी-भरकम सेना का भरसक सामना किया, लेकिन संख्या में बहुत कम होने के कारण वे वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। इसके बाद से हर साल यौम-ए-आशूरा पर मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है।

India Edge News Desk

Follow the latest breaking news and developments from Chhattisgarh , Madhya Pradesh , India and around the world with India Edge News newsdesk. From politics and policies to the economy and the environment, from local issues to national events and global affairs, we've got you covered.

Related Articles

Back to top button